yantra

“ॐ ब्रह्मा मुरारि स्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो: बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनि: राहु केतव: सर्वे ग्रहा: शांति करा: भवन्तु।।”

आज के वैज्ञानिक युग मे जो स्थिति रसायन विज्ञान की है,वही यंत्र विज्ञान की है। यंत्रवत(आधुनिक मशीन के समान) शीघ्रता से कार्य करने वाले रेखाचित्र तथा उनमे अंकित संकेताक्षरों तथा अंको के संयोजन को “यन्त्र”कहते है। काल चक्र में ज्योतिषीय दृष्टिकोण से परेशानियों को दूर करने में मंत्र,रत्न,यंत्र का विशेष महत्व है।

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यंत्र विद्या यधपि प्रतिमा पूजा काल के युग से भी बहुत प्राचीन है। मंत्र शास्त्र की अनेक कठिनाइयों को देखते हुए ही सम्भवतः यंत्रो को सहर्ष स्वीकार किया गया था। रेखात्मक,वर्णात्मक,अंकात्मक अथवा समन्वयात्मक पध्दति से बनाये गए धातुमय,वर्णमय या लिखित यन्त्र में उसके देवता की स्थापना की जाती है और इन यंत्रो को पूजन यन्त्र या धारण यन्त्र कहा जाता है।

यन्त्र अपने आप में एक रहस्य है,इस रहस्य को अनुभव करके ही जाना जा सकता है। यन्त्र की पहली शर्त ही गोपनीयता है। यन्त्र शब्द ‘यं’ धातु से निष्पन्न होता है,इसका अर्थ संयमित करना और केंद्रित करना ही होता है। यन्त्र विद्या एक गहन विद्या है और पलों में ही ये लाभ देने वाली होती है। ये सोचना केवल मूर्खता ही है कि यन्त्र तो छोटा सा है, ये क्या फल करेगा? क्या परमाणु बहुत बड़ा होता है? ध्यान से सोचे तो एक अति सूक्ष्म अणु ही तो है जिससे सारा संसार भयप्रद है।

जिस भांति मंत्र को देवता की आत्मा माना जाता है,उसी तरह यन्त्र देवता का निवास स्थल माना जाता है। यंत्रो को मंत्रो से अलग नहीं समझना चाहिए,यंत्र यदि शिवरूप है तो मंत्र उनकी अन्तर्निहित शक्ति है,जिससे वे स्वयं संचालित है। इसीलिये शिव और शक्ति का संतुलन आवश्यक है।

मानव शरीर ब्रह्माण्ड का सूक्ष्म रूप है,मनुष्य देह भी एक यन्त्र है। विशाल ब्रह्माण्ड को अभिव्यक्त करने के लिए ही यन्त्र का निर्माण किया जाता है। यंत्रो में बनी आकृतियां विशिष्ट देवी-देवताओ का प्रतिनिधित्व करती है, इनके कार्य करने का सिद्धांत आकृति,क्रिया और शक्ति पर आधारित है,इन तीनो के संयुक्त स्वरुप को ही यन्त्र का नाम दिया जाता है।

यन्त्र रचना केवल रेखांकन मात्र नहीं है बल्कि उसमे वैज्ञानिक तथ्य भी सन्निहित है। यंत्र में चमत्कारिक दिव्य शक्तियों का समावेश होता है,इनकी रचना भोजपत्र,चांदी,ताम्बा,पीतल,स्फटिक,स्वर्ण पत्रों पर गंगाजल,अष्टगंध व अन्य विधि से सही मंत्रोच्चार व पूजन से कराई जाती है,ये सभी पदार्थ कॉस्मिक तरंगे उत्पन्न करने और ग्रहण करने की क्षमता रखते है। मंत्रो व अंको के मेल से अत्यंत ही प्रभावी यंत्रो का निर्माण होता है,जिनका परिणाम अचूक होता है। यंत्र को धारण करने और पूजन करने से उसके अधिष्ठाता देवता का सीधा सम्बन्ध साधक से हो जाता है,जो तीव्र गति से अपना प्रभाव दिखता है और तुरंत कार्य करना प्रारम्भ कर देता है। यही रहस्य है यन्त्र शक्ति का।