औषधि मणि मंत्राणां-ग्रह नक्षत्रा तारिका।
भाग्य काले भवेत्सिद्धिः अभाग्यं निष्फलं भवेत्।।

रत्न शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है – “श्रेष्ठ” रत्न प्राय: दो प्रकार के होते है – खनिज रत्न और जैविक रत्न। खनिज रत्न उन रत्नो को कहते है जो खानो से प्राप्त होते है।पृथ्वी के गर्भ में विभिन्न रासायनिक द्रव्य विद्यमान है,इन रासायनिक द्रव्यों में विभिन्न तापक्रम के द्वारा विभिन्न प्रकार की रासायनिक क्रियाये निरंतर होती रहती है। इसी के परिणामस्वरूप पृथ्वी के गर्भ में विभिन्न रत्नो का जन्म होता है हीरा, माणिक, पन्ना, नीलम, पुखराज, गोमेद, लहसुनिया अन्य खनिज रत्न है।

रत्नो की दूसरी श्रेणी में जैविक रत्न आते है,जैविक जीव के द्वारा उत्पन्न किया गया। इस श्रेणी में विशेष दो रत्न आते है मोती और मूंगा। इनकी रचना विभिन्न समुद्री कीटों द्वारा समुद्र के गर्भ में की जाती है।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण से रत्नो-उपरत्नो का विशेष महत्व है। प्राचीन शास्त्रों की मान्यता है कि सभी रत्न उपरत्न एक प्रकार की शक्ति निहित होती है,जिसके आधार पर ये धारक की ग्रह बाधाओ को दूर कर उसके जीवन में सुख और शांति स्थापना करते है।

रत्न और ज्योतिष का आपस में गहरा सम्बन्ध है,रत्न सूर्य की किरणों को स्वयं में एकत्रित करके न सिर्फ मानव जीवन को प्रभावित करते है अपितु ग्रहो के दुष्प्रभाव को भी मिटाते है। उन तत्वों द्वारा हमारे शरीर ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से हरेक ग्रह का एक प्रतिनिधि रत्न निर्धारित किया है,रत्न सूर्य से रश्मिया ग्रहण कर हमारी त्वचा द्वारा उस ग्रह से सम्बंधित तत्व हमारे शरीर में पहुंचाते है,जो मनुष्य के जीवन में उस ग्रह के बुरे प्रभावों का निवारण करता है और जीवन में सकारात्मकता प्रदान करता है। इंसान सुख-दुःख,उत्थान-पतन,लाभ-हानि सब कुछ ग्रहो से होता है। ऐसी स्थिति गोचर में ग्रहो की चाल से होता है,ऐसी स्थिति कब आएगी ये आम व्यक्ति हर समय नहीं जान सकता है,इसी परेशानी से बचने हेतु रत्न पहने जाते है।

सबसे मुख्य बात यह है कि रत्न हमेशा उसी ग्रह का धारण करना चाहिए जो ग्रह आपके जन्म कुंडली में योगकारक हो, ना कि वह रत्न जिसका ग्रह आपकी कुंडली में मारक हो। क्योकि रत्न का कार्य है ग्रह को बल प्रदान करना। आम ज्योतिषो में चलन है कि वह उस ग्रह का रत्न धारण करने की सलाह देते है जिसकी आपके जन्म कुंडली के अनुसार महादशा चल रही हो। इसके लिए ये देखना अत्यंत जरूरी है कि वह महादशा का ग्रह आपके जन्म कुंडली में योगकारक है या मारक है,इसी प्राथमिकता के साथ ही सही रत्न का चुनाव करना चाहिए अन्यथा रत्न का बुरा प्रभाव भी देखा जा सकता है।

असली व प्रामाणिक रत्नो का ही प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है,लेकिन आजकल बाजार में नकली रत्नो की भरमार है,इसीलिए रत्न हमेशा असली ले उसकी पहचान हेतू उसका प्रमाण पत्र साथ अवश्य ले और अपने से दोबारा प्रमाण पत्र भी बनवाये ताकि आपको भी तसल्ली रहे कि आपने असली रत्न पहना है,उससे आप भी ग्रहो का सकारात्मक परिणाम प्राप्त कर पायेगे अन्यथा नकली रत्न पहनने के बाद आप व्यर्थ में ज्योतिष व ज्योतिषी के प्रति शंका व्यक्त करेंगे।